Saturday, July 14, 2012

श्वानों की भी जय…. और श्वानपालकों की भी जय…..

दुमहिलाऊ हों, चाहें भौंकने वाले पूरी दुनिया में कुत्तों का अपना अलग ही संसार है। जात-जात के कुत्ते संसार भर में हर कहीं पाए जाते हैं। ये कुत्ते ही हैं जो महाभारत काल से युधिष्ठिर के साथ जाने का दम-खम पा गए हैं और आज भी हर कहीं बड़े-बड़े लोगों के साथ हमसफर बने हुए इठला रहे हैं। बड़े लोगों का सान्निध्य पाने वाले कुत्तों से किसी को ईष्र्या नहीं होनी चाहिए क्याेंकि यह कुत्तों की युगों से निभायी जा रही वफादारी का शाश्वत तोहफा है। कुत्तों के प्रति यह आदर और सम्मान ही है जो उन्हें बैडरूम और कीचन से लेकर घर के कोने-कोने तक में विचरण और किसी भी परिजन के साथ गलबहियाँ करने से लेकर साथ-साथ नींद का आनंद लेने के सारे आजन्म अधिकार पाए हुए हैं। कुत्तों का समाज-जीवन से लेकर कार्यक्षेत्रों और सर्वत्र निर्बाध प्रवेश और विचरण का यह मायाजाल न होता तो आदमी के जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती थी। ये कुत्ते ही हैं जो आदमी का मन हल्का कर देते हैं, काम हल्के कर देते हैं, सुरक्षा प्रदान करते हैं और तनावों के वक्त सुकून का अहसास कराते हैं। कुत्तों का ही कमाल है कि कोई कहीं किसी की कमी महसूस नहीं करता और अकेलेपन में भी दिल लग जाता है, बोरियत का नामोंनिशान मिट जाता है और लगता है अपना कोई है हमारे साथ साये की तरह। आदमी के कई-कई काम कुत्तों के बगैर हो ही नहीं सकते। हम इतने पराश्रित होते जा रहे हैं कि हमें हर कहीं तलाश होती है कुत्तों की, भगवान ने इन कुत्तों की जात नहीं बनायी होती तो हमारे कितने ही काम कौन करता? वैज्ञानिक भी मानने लग गए हैं कि कुत्तों का सामीप्य-सुख हमारे कई तनावों और कामों को हल्का कर देता है और जीने का जो सुकून कुत्तों के साथ रहकर पाया जा सकता है वह और कहीं नहीं। भला हमारे ऋषि-मुनियों को कुत्तों की इस विलक्षण प्रतिभाओं और प्रभावों का पता क्यों नहीं लग पाया? यह आश्चर्य का विषय ही हो सकता है। किसम-किसम के कुत्ते हमारे इर्द-गिर्द घूमते रहते हैं, पाए जाते हैं और हमारे सम्पर्क में कभी न कभी आते रहते हैं, पर हम उनकी विलक्षण प्रतिभा को पहचान नहीं पाते हैं यह हमारा नहीं तो किसका दोष है? जीवन में एक बार जो कुत्तों की संगति का आनंद पा लेता है वह कुत्तों का सान्निध्य जिन्दगी भर तक छोड़ नहीं पाता। कुत्ते और इनकी जिन्दगी एक-दूसरे का पर्याय ही हो जाती है। फिर एक बार कुत्तों की संगति का मजा लेने वालों को कुत्तों की किसी एकमेव किस्म का आनंद नहीं आता बल्कि पूरी जिन्दगी नई-नई किस्मों के कुत्तों की तलाश और सान्निध्य पाने की जिज्ञासाएं बनी रहती हैं। कभी देशी तो कभी विदेशी कुत्तों का सान्निध्य सुख तो कभी जात-जात के करामाती कुत्तों की अठखेलियाँ। आदमी कुत्तों की जमात के रंग देखकर मृत्यु पर्यन्त कुत्तों के रंग में रमा रहता है। कुत्तों में कई प्रजातियां होती हैं। कई कुत्ते तो बरसों से अपने कई-कई रंग दिखाकर इतने बदरंग हो जाते हैं कि सड़ियल बन कर दिन-रात खुजलाते रहते हैं। इन खुजलाते कुत्तों को किसी भी बात पर खुजलाहट हो सकती है। यह खुजलाहट उनकी आदत में शुमार हो जाती है और मरते दम तक पीछा नहीं छोड़ती। कुत्तों में दो बड़ी किस्मे होती हैं – भौंकने वाले और दुमहिलाऊ। भौंकने वाले अक्सर भौंकते हुए कहीं भी नज़र आ ही जाते हैं। इन्हें भौंकने के कारणों से कोई सरोकार नहीं होता बल्कि भौंकने के लिए भौंकना है और अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए भौंकना इनकी मजबूरी है। दूसरी किस्म है दुमहिलाऊ। इस किस्म के कुत्ते बहुत चतुर और डुप्लीकेट होते हैं या यों कहें कि इनमें जमाने के वे सारे गुण अपने आप आ जाते हैं जो अपने आस-पास देखते हैं। दुमहिलाऊ कुत्तों की संख्या आजकल खूब बढ़ती जा रही है। इनके लिए दुमहिलाने का मतलब है औरों को खुश करना। यह उनका मालिक हो सकता है, आका हो सकता है या वे सब भी जो उसके काम आने वाले हैं अर्थात् उसे रोटी या हड्डी डालने का माद्दा रखते हैं। दुमहिलाऊ कुत्तों का व्यवहार और चरित्र दूसरी सारी किस्मों से भिन्न होता है। इन्हें असली कुत्तों की संज्ञा दी जा सकती है। इनमें कई चुपचाप और रात के अंधेरे में दुम हिलाते हैं तो कई सार्वजनिक तौर पर दुम हिलाकर गर्व का अनुभव करते हैं। दुमहिलाऊओं के अपने कई-कई समूह भी हुआ करते हैं जो मौके-बेमौके जहां कहीं भी अवतरित होकर अपनी प्रजाति के संरक्षित होने का गौरव अभिमान अभिव्यक्त करते रहते हैं। इन्हें भी भौंकने वालों की ही तरह सम्मान और आदर पसंद है। कुत्ते भी ईश्वर की सम्माननीय कृति हैं और इनका सम्मान करना हमारा फर्ज है। किसी भी कुत्ते के प्रति सम्मान और श्रद्धा दर्शाने का अर्थ है उसके निर्माता ईश्वर के प्रति सम्मान। इन कुत्तों को भगवान अमर रखे ताकि इनका सान्निध्य पाने वाले लोग मस्ती के साथ जी सकें। श्वानों की भी जय…. और श्वानपालकों की भी जय…..
November 2011 (222) October 2011 (208) S