Thursday, March 28, 2013

संजय दत्त को बचाना आग से खेलना है!


संजय दत्त को जिस अपराध में सजा दी गयी है, उसमें उसे पहले ही विशेष कोर्ट द्वारा बहुत ही कम सजा दी गयी, अन्यथा देश के दुश्मनों और आतंकियों से सम्बन्ध रखने और उनसे गैर-कानूनी तरीके से घातक हथियार प्राप्त करने और उन्हें उपने घर में रखने। आतंकियों के बारे में ये जानते हुए कि वे आतंकी हैं, उनसे गले लगकर मिलने जैसे गम्भीर आरोपों में यदि अन्य कोई समान्य व्यक्ति फंसा होता तो निश्‍चय ही उसे भी आतंकी करार दे दिया गया होता। ऐसे में मात्र गैर-कानूनी रूप से हथियार रखने के छोटे जुर्म के लिये ही संजय दत्त को दोषी ठहराया जाना अपने आप में अनेक प्रकार के सवाल खड़े करता है? यदि संजय दत्त के स्थान पर कोई संजय खान रहा होता तो और चाहे उसकी ओर से कितने ही समाज सेवा के काम किये गये होते उसे अदालत के साथ-साथ समाज की ओर से भी कभी भी नहीं बक्शा जाता। इसलिये हमें अपराधी के व्यक्तिगत नाम, उसकी ख्याति, प्रतिष्ठा या उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि आदि को देखे बिना उसे सिर्फ और सिर्फ अपराधी ही मानना चाहिये और समाज को संजय दत्त को भी उन लाखों लोगों की भांति अपने किये की सजा भुगतने देनी चाहिये, जिनको बचाने वाला कोई नहीं होता है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो देश में एक नयी और गैर-कानूनी ऐसी धारणा का अभ्युदय होगा, जिसके तहत समर्थ और विख्यात लोगों के प्रति मीडिया के मार्फत प्रायोजित सहानुभूति जगाकर उन्हें आसानी से बचाया जा सकेगा! ये रास्ता हमें अन्धकार और अन्याय की ओर ले जाता है और ऐसे ही मनमाने और गैर-कानूनी कारनामें समाज में असन्तोष और आपराधिक माहौल को जन्म देते हैं। यदि एक पंक्ति में कहें तो संजय दत्त को बचाना आग से खेलना है। अन्तत: ऐसे मनमाने कारनामों की परिणिती नक्सलवाद जैसे विकृत रूपों में नजर आती है। चुनाव हमें करना है कि हम कानून का शासन चाहते हैं या जानबूझकर कानून और न्याय-व्यवस्था को धता बताकर नक्सलवाद जैसे हालातों को आमंत्रित करना चाहते हैं? चूंकि संजय दत्त तो एक ख्यात नाम है सो उसके अच्छे-बुरे कामों के बारे में जन-जन को पता है, लेकिन समाज में ऐसे हजारों आरोपी और गुनाहगार हैं, जो जमानत पर छूटने के बाद संजय दत्त से भी अधिक सज्जन नागरिक बन चुके हैं और संजय दत्त से कई गुना अधिक देशभक्त, समाजसेवी और भले मानव बन चुके हैं, ऐसे में उनको भी यदि कोर्ट द्वारा दोषी ठहराया जाता है तो क्या उन्हें भी माफ करने के लिये कोई दलील पेश करके या अभियान चलाया कर बचाया जा सकेगा? कभी नहीं! अत: हमारे द्वारा भावनाओं में बहकर किसी भी दोषी के प्रति आज सहानुभूति प्रकट करना कल अनेक मुसीबतों को आमंत्रित करना होगा। बेशक तथाकथित राष्ट्रीय मीडिया जो औद्योगिक घरानों का असली प्रतिनिधि हैं और उन्हीं की भाषा बोलता है, लेकिन देश के कानून का सम्मान करने और कानून के अनुसार संजय दत्त को पांच वर्ष की कैद भुगताकर हमें एक मिसाल कायम करनी चाहिये कि हमारे देश में कानून के समक्ष सभी को समान समझा जाता है। सभी को कानून का सम्मान करना ही होता है। अन्यथा इसके विपरीत हम सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को धता बताकर कोई ऐसी पतली गली निकालते हैं, जिसके जरिये संजय दत्त को सजा भोगने से बचा लेते हैं तो इससे अत्यन्त ही नकारात्मक संदेश जाने वाला है।

Thursday, September 20, 2012

ज़िन्दा कौमें पांच साल इन्तज़ार नहीं करतीं।

सरकार ने पेट्रोल की कीमत पहले ही ७५ रुपए प्रति लीटर पहुंचा दी। रातों रात बिना किसी घोषणा के एक्स्ट्रा प्रीमियम पेट्रोल ६.७१ रुपए महंगा कर दिया गया। तेल कंपनियों की टेढ़ी नज़र डीज़ल और रसोई गैस पर थी, सो वह कमी भी पूरी कर दी गई। डीज़ल पर ५ रुपए प्रति लीटर तथा रसोई गैस के सातवें सिलिन्डर पर ३७१ रुपए की एकमुश्त बढ़ोत्तरी सरकार की असंवेदनशीलता का सबसे बड़ा प्रमाण है। सरकार की ओर से पूरे देश को बताया जा रहा है कि बढ़ते राजकोषीय घाटे पर अंकुश लगाने के लिए मूल्यों में यह वृद्धि आवश्यक ही नहीं अपरिहार्य थी। इससे बड़ा झूठ दूसरा हो ही नहीं सकता। बोफ़ोर्स घोटाला, २-जी घोटाला, कोलगेट घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, स्विस बैंक घोटालों पर लगातार झूठ बोलने के कारण सरकार को झूठ बोलने की आदत लग गई है। सच्चाई यह है कि हमारे सकल घरेलू उत्पाद के ६.९% के ऊंचे सतर पर भी राजकोषीय घाटा ५.२२ लाख करोड़ रुपया ही आएगा। पिछले वित्तीय वर्ष में इसी सरकार ने कारपोरेट खिलाड़ियों तथा धनी तबकों को पूरे ५.२८ लाख करोड़ रुपए की प्रत्यक्ष रियायतें दी है। जो पहले से ही संपन्न हैं और देश की संपदा दोनों हाथों से लूट रहे हैं, उनपर यह भारी रकम यदि नहीं लुटाई गई होती, तो सरकारी खजाने पर राजकोषीय घाटे का कोई बोझ होता ही नहीं। लेकि धनी तबकों पर भारी राशि लुटाने के बाद हमारी केन्द्र सरकार अब राजकोषीय घाटे पर अंकुश लगाने के लिए गरीबों और मध्यम वर्ग को जो भी थोड़ी बहुत सबसिडी हासिल थी, उसपर बेरहमी से कैंची चला रही है। जिन तेल कंपनियों के घाटे की बात कहकर डीज़ल और रसोई गैस की कीमतों में भयानक वृद्धि की गई है, क्या वे वाकई घाटे में हैं? सफ़ेद झूठ बोलते हुए इस असंवेदनशील सरकार को लज्जा भी नहीं आती। अपनी बैलेन्स शीट मे देश की विशालतम तेल तथा प्राकृतिक गैस कंपनी ओएनजीसी ने वर्ष २०११-१२ के लिए २५१२३ करोड़ रुपए के शुद्ध लाभ की घोषणा की है। इसी प्रकार इंडियन आयल कारपोरेशन ने वर्ष २०११-१२ में ४२६५.२७ करोड़ रुपए के शुद्ध लाभ की घोषणा की है। हिन्दुस्तान पेट्रोलियम ने भी मुनाफ़े की घोषणा की है। दिलचस्प बात यह है कि इस कंपनी ने पिछले वर्ष की अन्तिम तिमाही में मुनाफ़े में ३१२% की वृद्धि दर्शाई थी। उपर लिखे गए आंकड़े कल्पना की उड़ान नहीं हैं। ये सभी आंकड़े सरकारी हैं और नेट पर उपलब्ध हैं। तेल कंपनियों ने भारी मुनाफ़ा कमाया है, भारी भ्रष्टाचार के बावजूद। तेल कंपनियों में प्रत्येक स्तर पर भ्रष्टाचार शामिल है। तेल खोजने के नाम पर कंपनियां असंख्य कुंए कागज़ पर खोदती हैं और पाट भी देती हैं। ठेकेदारों को भुगतान के बाद खुदाई और पाटने का कोई प्रमाण ही नहीं बचता। कोई सी.वी.सी. कैग या सी.बी.आई. इन घोटालों को नहीं पकड़ सकती। विदेशों से कच्चा तेल खरीदने में बिचौलियों की भूमिका बहुत बड़ी होती है। हजारों करोड़ के कमीशन की लेन-देन होती है। सरकार यदि इन भ्रष्टाचारों पर अंकुश लगा दे और उत्पाद शुल्क में ५०% तथा अन्य टैक्सों में २५% की कटौती कर दे, तो पेट्रोल २५ रुपए प्रति लीटर, डीज़ल १५ रुपए प्रति लीटर तथा रसोई गैस का एक सिलिंडर १५० रुपए में प्राप्त होगा। देश की जनता के साथ बहुत बड़ी धोखाधड़ी की जा रही है।

Saturday, July 14, 2012

श्वानों की भी जय…. और श्वानपालकों की भी जय…..

दुमहिलाऊ हों, चाहें भौंकने वाले पूरी दुनिया में कुत्तों का अपना अलग ही संसार है। जात-जात के कुत्ते संसार भर में हर कहीं पाए जाते हैं। ये कुत्ते ही हैं जो महाभारत काल से युधिष्ठिर के साथ जाने का दम-खम पा गए हैं और आज भी हर कहीं बड़े-बड़े लोगों के साथ हमसफर बने हुए इठला रहे हैं। बड़े लोगों का सान्निध्य पाने वाले कुत्तों से किसी को ईष्र्या नहीं होनी चाहिए क्याेंकि यह कुत्तों की युगों से निभायी जा रही वफादारी का शाश्वत तोहफा है। कुत्तों के प्रति यह आदर और सम्मान ही है जो उन्हें बैडरूम और कीचन से लेकर घर के कोने-कोने तक में विचरण और किसी भी परिजन के साथ गलबहियाँ करने से लेकर साथ-साथ नींद का आनंद लेने के सारे आजन्म अधिकार पाए हुए हैं। कुत्तों का समाज-जीवन से लेकर कार्यक्षेत्रों और सर्वत्र निर्बाध प्रवेश और विचरण का यह मायाजाल न होता तो आदमी के जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती थी। ये कुत्ते ही हैं जो आदमी का मन हल्का कर देते हैं, काम हल्के कर देते हैं, सुरक्षा प्रदान करते हैं और तनावों के वक्त सुकून का अहसास कराते हैं। कुत्तों का ही कमाल है कि कोई कहीं किसी की कमी महसूस नहीं करता और अकेलेपन में भी दिल लग जाता है, बोरियत का नामोंनिशान मिट जाता है और लगता है अपना कोई है हमारे साथ साये की तरह। आदमी के कई-कई काम कुत्तों के बगैर हो ही नहीं सकते। हम इतने पराश्रित होते जा रहे हैं कि हमें हर कहीं तलाश होती है कुत्तों की, भगवान ने इन कुत्तों की जात नहीं बनायी होती तो हमारे कितने ही काम कौन करता? वैज्ञानिक भी मानने लग गए हैं कि कुत्तों का सामीप्य-सुख हमारे कई तनावों और कामों को हल्का कर देता है और जीने का जो सुकून कुत्तों के साथ रहकर पाया जा सकता है वह और कहीं नहीं। भला हमारे ऋषि-मुनियों को कुत्तों की इस विलक्षण प्रतिभाओं और प्रभावों का पता क्यों नहीं लग पाया? यह आश्चर्य का विषय ही हो सकता है। किसम-किसम के कुत्ते हमारे इर्द-गिर्द घूमते रहते हैं, पाए जाते हैं और हमारे सम्पर्क में कभी न कभी आते रहते हैं, पर हम उनकी विलक्षण प्रतिभा को पहचान नहीं पाते हैं यह हमारा नहीं तो किसका दोष है? जीवन में एक बार जो कुत्तों की संगति का आनंद पा लेता है वह कुत्तों का सान्निध्य जिन्दगी भर तक छोड़ नहीं पाता। कुत्ते और इनकी जिन्दगी एक-दूसरे का पर्याय ही हो जाती है। फिर एक बार कुत्तों की संगति का मजा लेने वालों को कुत्तों की किसी एकमेव किस्म का आनंद नहीं आता बल्कि पूरी जिन्दगी नई-नई किस्मों के कुत्तों की तलाश और सान्निध्य पाने की जिज्ञासाएं बनी रहती हैं। कभी देशी तो कभी विदेशी कुत्तों का सान्निध्य सुख तो कभी जात-जात के करामाती कुत्तों की अठखेलियाँ। आदमी कुत्तों की जमात के रंग देखकर मृत्यु पर्यन्त कुत्तों के रंग में रमा रहता है। कुत्तों में कई प्रजातियां होती हैं। कई कुत्ते तो बरसों से अपने कई-कई रंग दिखाकर इतने बदरंग हो जाते हैं कि सड़ियल बन कर दिन-रात खुजलाते रहते हैं। इन खुजलाते कुत्तों को किसी भी बात पर खुजलाहट हो सकती है। यह खुजलाहट उनकी आदत में शुमार हो जाती है और मरते दम तक पीछा नहीं छोड़ती। कुत्तों में दो बड़ी किस्मे होती हैं – भौंकने वाले और दुमहिलाऊ। भौंकने वाले अक्सर भौंकते हुए कहीं भी नज़र आ ही जाते हैं। इन्हें भौंकने के कारणों से कोई सरोकार नहीं होता बल्कि भौंकने के लिए भौंकना है और अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए भौंकना इनकी मजबूरी है। दूसरी किस्म है दुमहिलाऊ। इस किस्म के कुत्ते बहुत चतुर और डुप्लीकेट होते हैं या यों कहें कि इनमें जमाने के वे सारे गुण अपने आप आ जाते हैं जो अपने आस-पास देखते हैं। दुमहिलाऊ कुत्तों की संख्या आजकल खूब बढ़ती जा रही है। इनके लिए दुमहिलाने का मतलब है औरों को खुश करना। यह उनका मालिक हो सकता है, आका हो सकता है या वे सब भी जो उसके काम आने वाले हैं अर्थात् उसे रोटी या हड्डी डालने का माद्दा रखते हैं। दुमहिलाऊ कुत्तों का व्यवहार और चरित्र दूसरी सारी किस्मों से भिन्न होता है। इन्हें असली कुत्तों की संज्ञा दी जा सकती है। इनमें कई चुपचाप और रात के अंधेरे में दुम हिलाते हैं तो कई सार्वजनिक तौर पर दुम हिलाकर गर्व का अनुभव करते हैं। दुमहिलाऊओं के अपने कई-कई समूह भी हुआ करते हैं जो मौके-बेमौके जहां कहीं भी अवतरित होकर अपनी प्रजाति के संरक्षित होने का गौरव अभिमान अभिव्यक्त करते रहते हैं। इन्हें भी भौंकने वालों की ही तरह सम्मान और आदर पसंद है। कुत्ते भी ईश्वर की सम्माननीय कृति हैं और इनका सम्मान करना हमारा फर्ज है। किसी भी कुत्ते के प्रति सम्मान और श्रद्धा दर्शाने का अर्थ है उसके निर्माता ईश्वर के प्रति सम्मान। इन कुत्तों को भगवान अमर रखे ताकि इनका सान्निध्य पाने वाले लोग मस्ती के साथ जी सकें। श्वानों की भी जय…. और श्वानपालकों की भी जय…..
November 2011 (222) October 2011 (208) S

Sunday, April 22, 2012

अब कुछ कठोर निर्णय ले मनमोहन सरकार

महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है। घोटालों की बात करें, तो संप्रग सरकार-दो ने घोटालों के सभी रिकॉर्ड ध्वस्त कर डाले हैं। पार्टी और सरकार के भीतर चल रहे विरोध को मनमोहन सिंह भी अच्छी तरह जानते हैं, पर वे जान-बूझकर चुप हैं। उनकी यह चुप्पी देश को गर्त में धकेलने का काम कर रही है। क्या देश को इस संकट से मुक्ति मिलेगी? क्या सरकार दबाव में आए बिना देशहित के कार्य कर पाएगी? शायद नहीं, क्योंकि इसके लिए जिस मजबूत इच्छाशक्ति की जरूरत है, उसका सरकार और उसके नुमाइंदों का दूर तक वास्ता नहीं है। ममता, मुलायम, मायावती, करुणानिधि, शरद पवार जैसे सहयोगियों से हमेशा दबकर काम करने की मजबूरी ने देश को राजनीतिक इतिहास की सबसे कमजोर और भ्रष्ट सरकार दी है।
अच्छा तो यह होता कि प्रधानमंत्री एक बार दो टूक शब्दों में सहयोगियों को चेतावनी दे देते, पर लगता है कि उन्हें भी दबाव में सरकार चलाने की आदत-सी हो गई है। फिलहाल, कोई भी राजनीतिक दल देश में मध्यावधि चुनाव नहीं चाहता। ऐसे में सरकार को अपने सहयोगियों के रुख के प्रति कुछ कठोर निर्णय लेने होंगे, ताकि उसकी बची-खुची इज्जत और तार-तार न हो। अब जबकि बजट सत्र चल रहा है और सरकार सहयोगियों के आगे लगभग हार मानती नजर आ रही है, प्रधानमंत्री सहयोगी दलों के साथ बेहतर समन्वय स्थापित करने हेतु हफ्ते में तीन बार बैठक करने की बात कर रहे हैं। इसके लिए एक समन्वय समिति बनाने की प्रक्रिया चल रही है। फिर, प्रधानमंत्री की बेबसी का आलम तो देखिए कि उन्हें हर फैसले के लिए 10 जनपथ का मुंह ताकना पड़ता है। ऐसे में समझा जा सकता कि देश में सुशासन की स्थिति क्या होगी? देश में कांग्रेस की बदहाल स्थिति को देखते हुए प्रधानमंत्री से यह अपेक्षा है कि वे सहयोगियों के प्रति सख्त रुख अपनाएं, ताकि देश को एक मजबूत सरकार मिल सके।

Wednesday, June 22, 2011

कांग्रेस बार बार मुद्दों से क्यों भटका रही है?

भ्रष्ट कांग्रेसियों को बाबा का जायज़ धन तो दिख रहा है किन्तु हमारे खून पसीने की कमाई को चूस कर भ्रष्ट नेताओं द्वारा अवैध रूप से विदेशी बैंकों में जमा किया हुआ धन नहीं दिखता| बाबा का आन्दोलन काले धन को भारत में वापस लाने के लिए था और उल्टे दिल्ली में बैठी भ्रष्ट सरकार ने ही इस पर कोई कार्यवाही करने के बजाय मुद्दे से भटक कर बार बार पहले बाबा रामदेव की संपत्ति की जांच करवाई| बाबा रामदेव के द्वारा संपत्ति का पूरा ब्यौरा देने के बाद भी इन्हें जांच करनी थी| बाबा रामदेव ने अपने ट्रस्ट की सारी संपत्ति का ब्यौरा दे दिया| बाबा रामदेव ने बताय कि इनके चार ट्रस्टों का कुल व्यवसाय ११७७.२१ करोड़ रुपये है| इन ट्रस्टों की कुल पूँजी ४२६.१९ करोड़ रुपये है जबकि खर्च ७५१.०२ करोड़ रुपये है|

Saturday, June 19, 2010

नक्सली आतंकवाद की भयानक तस्वीर:


• 2009 के आंकड़ों के अनुसार नक्सलवाद देश के 20 राज्यों की 220 जिलों में फैल चुका हैं।

• पिछले तीन साल (2007-08 तथा 2009) में देश में नक्सली हिंसा के कारण 1405 लोग मारे गए जबकि 754 सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए।

• भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ के मुताबिक देश में 20,000 नक्सली काम कर रहे हैं।

• लगभग 10,000 सशस्त्र नक्सली कैडर बुरी तरह प्रेरित और प्रशिक्षित हैं।

• आज देश में 56 नक्सल गुट मौजूद हैं।

• करीब 40 हजार वर्ग किलोमीटर इलाका नक्सलियों के कब्जे में हैं।

• नक्सली करीब 1400 करोड़ रुपए हर साल रंगदारी के जरिए वसूलते हैं।

• नक्सली भारतीय राज्य को सशस्त्र विद्रोह के जरिए वर्ष 2050 तक उखाड़ फेंकना चाहते हैं

भोपाल गैस त्रासदी पर न्याय


आज चाहे भले ही सब लोग भोपाल के गैस पीड़ितों के लिए दर्द दिखा रहे हों लेकिन उनकी लड़ाई अग किसी ने ईमानदारी से लड़ी तो वे गैर सरकारी संगठन है जो इसके लिए बधाई के पात्र हैं। उन्हें साधुवाद कि इन गरीब और सीधे-सादे लोगों के साथ वे खड़े हुए और उन्होंने इनकी लड़ाई लड़ी जो कायदे से भारत सरकार को लड़नी चाहिए थी। विपक्ष तभी इस बारे में खामोश ही रहा, दुर्घटना के बाद आयी कई सरकारों ने भी शायद इसे उतनी गंभीरत से नहीं लिया जितना लिया जाना चाहिए था। अब अगर सब नींद से जाग गये हैं तो शायद यह उनकी मजबूरी है क्योंकि इस बड़ी त्रासदी से मुंह चुराना उन्हें महंगा पड़ा सकता है। इससे उनके जन समर्थन में फर्क पड़ सकता है जो शायद भविष्य में उनके सत्ता समीकणों को भी बदल सकता है। ऐसा कोई नहीं चाहेगा चाहे वह सत्ता पक्ष हो या प्रतिपक्ष। हम और हर देशवासी भी यही चाहता है कि जिन लोगों ने अंधाधुंध औद्योगिक विकास की कीमत अपनी जान देकर चुकायी है, या जो आज भी उस त्रासदी का दुख भोग रहे हैं, उन्हें न्याय मिले। ऐसी इच्छा गैरवाजिब तो नहीं। सत्ता पक्ष विपक्ष इस त्रासदी पर राजनीति खेलने के बजाय आपसी समझदारी से जितना बन पड़े पीडि़तों की मदद करे। इसमें ही देश और गैस त्रासदी का गम झेल रहे लोगों का भला है।